Friday, November 23, 2012

भारत को न अजमल कसाव न अफजल गुरु बरबाद कर सकते है भारत को बरबाद कर रहै है काटजू जैसे पढ़े लिखे भारतीय

बाला साहेब के मृत्यु के बाद भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष और उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने एक लेख लिखा जिसमे उन्होंने कहा की वो बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि अर्पित नहीं करेंगे. सबको अपने अपने विचार होते है इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए पर उन्होंने बाल ठाकरे के बहाने अपने लेख में लिखा है की यहाँ पर रहने वाली जनसँख्या का ९४ % हिस्सा यहाँ के नहीं है आर्य जाती ने यहाँ क
े मूल निवासियों पर हमला करके इस देश को कब्ज़ा किया इसलिए भूमिपुत्र या भारत माता के पुत्र का सिद्धांत गलत है.
सन १९८० में ही यह विभिन्न पुरातत्वविदों के शोधो से सिद्ध हो चूका है की आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत या आर्य बाहर से आये है पूर्णतया गलत है उसके बाद जाने माने पुरातत्वविद माइकल डानिनो ने सारे सबूतों को बकायदे अपने पुस्तक”Invasion that Never Was (2000)” और ”the lost river ” में लिखा है और सभी जगहों पर यह माना जा चूका है की आर्य यही के है फिर भी कम्युनिस्ट विचारको ने मुस्लिमो की बरबरता को सही साबित करने के लिए लगातार यही प्रचार किया की मुस्लिमो का आक्रमण भारत के लिए कोई बड़ी बात नहीं है यह भूमि पहले भी आर्यों द्वारा रक्तरंजित की जा चुकी है. वही कांग्रेसियों के प्रेरणा श्रोत जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी पुस्तक ”भारत एक खोज ” में आर्यों के अनार्यो पर आक्रमण के सिद्धांत को सही बताया है. नेहरू के इस पुस्तक और महाझूठ को को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए दूरदर्शन ने इस पर एक धारावाहिक भी बनाया और आम लोगो तक के मन में यह भावना डालने की कोशिश की की आर्य बाहरी है.
वही भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक एम् एन रॉय ने भी इस आक्रमण के सिद्धांत को सही बताया और यहाँ तक लिखा की हिन्दुओ को मुसलमानों से सीख लेने की आवश्यकता है. और ये भी कह दिया कि यूरोपीय देशो ने मुसलमानों से सीख लेकर बहुत विकास किया है परन्तु मूर्ख हिन्दू कुछ सिखाना ही नहीं चाहते उन्हें मुसलमानों के महँ सभ्यता से बहुत कुछ सिखाना चाहिए.
कुछ लोगो ने घोड़ो के द्वारा सिद्ध करने की कोशिस की कि आर्य भारत के नहीं है लेकिन घोड़ो के तमाम जीवाश्मो से घोड़े वाली बात भी तर्क से परे हो चुकी है. वही सरस्वती नदी के बेसिन के मिलने और उसमे तमाम सभ्यतागत सबूतों को मिलाने से जो संस्कृति के इतिहास में टूट बताई जा रही थी उसकी भी भरपाई हो चुकी है क्योकि कुछ लोग सरस्वती नदी के बेसिन के खोज से पहले गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे थे कि भारतीय संस्कृति के पुरातन और नवीन हिस्से में टूट है वो वो अटूट नहीं इसलिए संभव है कि बीच में दूसरी सभ्यता या आर्यों का आक्रमण हुआ हो.
भारत के लोगो का भारतीय भूमि से, भारत माता से, अपने महान संस्कृति से लोगो का जुड़ाव न होने पाए इसका बहुत लंबा और संगठित प्रयास तभी से शुरू है जब से राष्ट्र को आजादी मिली , लोग जवाहर लाल नेहरु को अखंड भारत के विभाजन का दोषी मानते थे लेकिन कम्युनिस्ट पाकिस्तान बनाने के पुरजोर समर्थन में थे. नेहरू जी को लगा कि यदि कम्यूनिस्टो को शिक्षा संस्थानों में यदि कम्यूनिस्टो का कब्जा करा दिया जाय तो यहाँ के लोगो के दिमाग में इस तरह का परिवर्तन कर देंगे कि लोग मेरे इस गलती को गलती मानेंगे ही नहीं. इस कारण सभी बौधिक संस्थानों में कम्यूनिस्टो का कब्ज़ा करा दिया जो आज तक बदस्तूर जारी है. कम्यूनिस्टो ने इतिहास को इस तरह से परिवर्तित किया कि हिन्दुओ का इस भूमि विशेष से लगाव ख़तम हो जाय भारत को माता या जन्मभूमि मानने कि प्रवृत्ति नष्ट हो जाय.
आर्यों के मामले में नेहरू और कम्यूनिस्टो दोनों के ही सिद्धांत एक जैसे थे कि आर्य बाहर से आये है इन्होने यहाँ के मूल निवासियों को और यहाँ कि मूल संस्कृति को नष्ट कर दिया. अब देश के इतिहास के पुस्तकों में यही बात आज भी पढ़ाई जा रही है हालाकि आर्य बाहर से आये है इसका कोई विशेष सबूत नहीं था परन्तु अंग्रेजो ने यहाँ के लोगो को स्वाभिमान शून्य करने के लिए बार बार यह बात दोहराई और मुस्लिम तुष्टिकरण और मुस्लिम आक्रमण को समर्थित करने लायक यह बात लगी जिसके कारण कम्यूनिस्टो और मानसिक रूप से मुस्लिम जवाहर लाल नेहरू (जैसा कि नेहरु के बारे में डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने कहा था) ने इस बात को हाथो हाथ लिया और मुस्लिमो से कहना शुरू किया कि जीतनी बर्बरता तुम लोगो ने यहाँ मचाई है उससे कही ज्यादा इन हिन्दुओ ने बहुत पहले मचा रखी थी इसलिए तुम लोग भी निर्दोष हो यदि आर्य बाहरी होकर इस ज़मीन को अपना बता सकते है तो मुस्लिम भी इस ज़मीन पर बराबरी के साथ हक़ मांग सकते है. अंग्रेजो ने तो यह सब ईसाइओ को यहाँ प्रतिस्थापित करने और हिस्सा दिलाने हेतु सब कुछ फैलाया था पर कम्यूनिस्टो और नेहरू दोनों लोगो ने इसका उपयोग मुसलमानों को वोट बैंक में तब्दील करने में किया. उनके बर्बर मानसिकता का विरोध करने के बजाय यह गीत गाना शुरू किया कि तुम लोगो ने भी कोई गलत काम नहीं किया ऐसा तो बहुत पहले हिन्दू भी कर चुके है.
जवाहर लाल नेहरु ने मुसलमानों को वोट बैंक बने रहने के लिए अपने शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आज़ाद को विशेष निर्देश दे रखा था कि वो इलाके जहा पर मुस्लिम हो वह पर शिक्षा संस्थान न खोले न ही उन्हें पढ़ाई लिखी के लिए प्रेरित करे. यह बात सरदार पटेल कि बेटी मणिबेन पटेल ने अपने डायरी में स्पष्ट तरीके से लिखा है. वही कम्युनिस्ट भी प्रबुद्ध मुसलमानों का समर्थन करने के बजाय आतंकवादियों को सही बताते है और अप्रत्यक्ष रूप से मूर्ख और जाहिल मुसलमानों का ही समर्थन करते है.
और जस्टिस काटजू जैसे लोग इन्ही गलत इतिहास को पढ़कर बड़े हुए है. मै उनसे आशा नहीं करता कि अब इस उम्र में वो अपने विचार बदले पर मेरा मानना है कि देश कि नयी पीढी को सही इतिहास पढ़ना जरुरी है. इतिहास बदल कर किसी को सही गलत साबित नहीं किया जा सकता बल्कि सही इतिहास पढ़कर ये निर्धारित होता है कि कौन सही था कौन गलत.
भारत माता कि जय …….. वन्दे मातरम

1 comment:

  1. आपकी बात बिलकुल सत्य है इतिहास के साथ बहुत छेड़छाड़ करके हिंदुओं में हीन भावना पैदा की जा रही है जिसको जानना और रोकना बहुत जरुरी है और इसी बात पर मैंने अपने एक सामान्य लेख में सवाल उठाये थे !!
    भारतीय इतिहास का चीरहरण क्यों ?

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