गुरु नानक देव एक ऐसे महापुरुष थे जिन्हौने तत्कालीन समाज की विकृतियों को समझा और उसे नयी दि़शा प्रदान की औऱ उस काम को अंजाम दिया जो विरले ही कर पाते हैं गुरु नानक देव जी ने युग की धारा को मोड़कर सदियों से ज्ञान का वह स्थान मानव को दिखलाया जो उसके आचरण से नदारद था।गुरुजी ने आध्यात्म को एक नयी दिशा प्रदान की और दुनिया को बताया कि धर्म केवल दिखावे की या केवल चर्चा की वस्तु नही है यह तो आचरण में ढालने की वस्तु है।इतने दिनो की मुस्लिम गुलामी के बाद तथा इतने दिनो तक किसी भी योग्य गुरु के अभाव में समाज मे यह भावना पनप गयी थी कि धर्म तो केवल सन्यासियों के मतलब की वस्तु है इसे धारण करना केवल सन्यासियों का काम है ।एसे समय में गुरु नानक देव का पदार्पण निश्चय ही एक दैवीय घटना थी।इन्हौने मानव को समझाया कि धर्म तो विना संन्यासी बने व विना वन गमन किये सामान्य गृहस्थ रहते हुये भी पाया जा सकता है प्रभु तो मन के प्रेम भाव से मिलते हैं न कि तणाम पाखण्डों से।जो प्रभु को पाने की चाह रखता हो वह परमात्मा के प्रेम के लिए केवल सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हो प्रभु तो मिल ही जाएगा।
आज प्रकाश पर्व पर भाई प्रीतम सिंह छावड़ा जी के माई वेव दुनिया डाट काम से लेकर साभार यह लेख मैं अपने पाठको के लिए डाल रहा हूँ।
सर्वधर्म समभाव के पैरोकार
आज
से 540 वर्ष पूर्व भारत की पावन धरती पर एक युगांतकारी युगदृष्टा, महान
दार्शनिक, चिंतक, क्रांतिकारी समाज सुधारक, धर्म एवं नैतिकता के सत्य
शाश्वत मूल्यों के प्रखर उपदेशक, निरंकारी ज्योति का सन् 1469 में दिव्य
प्रकाश हुआ। इस दिव्य प्रकाश पुंज का नाम रखा नानक। नानकजी
के भीतर अल्लाह का नूर, ईश्वर की ज्योति को सबसे पहले दायी दौलता, बहन
नानकीजी एवं नवाब रायबुलार ने पहचाना। पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके
दर्शन किए, उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वरीय ज्योति का
साक्षात अलौकिक स्वरूप है। भाई गुरदासजी ने भी बड़े सुंदर शब्दों में
उच्चारित किया 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधु जगि चानणु होआ।' नानकजी
बाल्यकाल से संत प्रवृत्ति के थे। उनका मन आध्यात्मिक ज्ञान, साधना एवं
लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता। उन्होंने संसार के कल्याण के लिए ज्ञान
साधना द्वारा झूठे धार्मिक उन्माद एवं आडंबरों का विरोध किया। मन की
पवित्रता, सदाचार एवं आचरण पर विशेष बल देते हुए एक परमेश्वर की भक्ति का
सहज मार्ग सभी प्राणियों के लिए प्रशस्त किया।
दुनिया
में सभी स्वार्थ के लिए झुकते हैं, परोपकार के लिए नहीं। गुरुदेव स्पष्ट
ऐलान करते हैं कि मात्र सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय अशुद्ध हो, मन
में विकार हो, चित में प्रतिशोध हो। |
गुरुनानकजी
की सिद्धों से मुलाकात हुई तो सिद्धों ने सवाल किया कि हमारी जाति 'आई'
है, तुम्हारी जाति कौन-सी है? गुरुदेव ने फरमाया- 'आई पंथी सगल जमाती मनि
जीतै जगु जीतु।' अर्थात सारे संसार के लोगों को अपनी जमात का समझना, किसी
को छोटा या बड़ा न समझना ही हमारा पंथ (जाति) है। श्री गुरुजी ने संस्कारों
एवं रूढ़ियों को नए सुसंस्कारित अर्थों में ग्रहण कर उच्च मानवीय मूल्यों की
स्थापना की और 'मनि जीतै जगु जीतु' का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
यह
सिद्धांत था मन पर कंट्रोल करने का, क्योंकि मन पर विजय पाकर ही सारी
दुनिया पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यह जीत तीर-तलवार या बम के गोलों की
न होकर सिद्धांतों की जीत होती है और इस जीत के पश्चात मनुष्य जीवनरूपी
बाजी जीतकर ही जाता है। -
प्रीतमसिंह छाबड़ा
No comments:
Post a Comment