Wednesday, November 21, 2012

जब नेहरु द्वारा एक केबिनेट मीटिंग के दौरान सरदार पटेल को अपमानित और लांछित किया गया

सरदार पटेल एक एसा नाम जो भारत के प्रत्येक व्यक्ति के लिए कोई अनजाना नाम नही है।भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का वह नाम जो किसानो का नेता के नाम से जाना जाता हो।भारत जिसे लौह पुरुष के नाम से जानता है।
” जिस व्यक्ति ने लार्ड माउण्टवेटेन,वी.पी. मेनन के साथ मिलकर  90 वर्ष के ब्रिटिश राज, मुगल शासन के 180 वर्षों या अशोक अथवा मौर्या शासकों के 130 वर्षों की तुलना में ज्यादा विशाल एवं  संगठित भारत हासिल किया।”
हम इन तीनों लोगों के समूह  की उपलब्धि को  आदरांजलि समर्पित करते हैं।
ऑलेक्स फॉन टुनेसलेमान नामक  जर्मन महिला ने जो अर्थपूर्ण ढंग से लिखा है उसकी पुष्टि वी.पी. मेनन द्वारा दि स्टोरी ऑफ इंटीगिरेशन ऑफ दि इण्डियन स्टेट्स‘ के 612 पृष्ठों में तथ्यों और आंकड़ों से इस प्रकार की है।

”564 भारतीय राज्य पांचवा हिस्सा या लगभग आधा देश बनाते हैं: कुछ बड़े स्टेट्स थे, कुछ केवल जागीरें। जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक पृथक देश बना तब भारत का 364, 737 वर्ग मील और 81.5 मिलियन जनसंख्या से हाथ धोना पड़ा लेकिन स्टेट्स का भारत में एकीकरण होने से भारत को लगभग 500,000 वर्ग मील और 86.5 मिलियन जनसंख्या जुड़ी जिससे, भारत की पर्याप्त क्षतिपूर्ति हुई।”

स्टेट्स के एकीकरण सम्बंधी अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में वी.पी. मेनन लिखते हैं: यह पुस्तक स्वर्गीय सरदार वल्लभभाई पटेल को किए गए वायदे की आंशिक पूर्ति है। यह उनकी तीव्र इच्छा थी कि मैं दो पुस्तकें लिखूं, जिसमें से एक में उन घटनाओं का वर्णन हो जिनके चलते सत्ता का हस्तांतरण हुआ और दूसरी भारतीय स्टेट्स के एकीकरण से सम्बन्धित हो।
30 अक्टूबर, 2012 को सरदार पटेल की जयंती की पूर्व संध्या पर ‘पायनियर‘ ने एक समाचार प्रकाशित किया कि कैसे प्रधानमंत्री नेहरु हैदराबाद की मुक्ति के सरदार की योजना को असफल करना चाहते थे।
समाचार इस प्रकार है:

”तत्कालीन उपप्रधानमंत्री और भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल जिनकी 137वीं जयंती 31 अक्टूबर को है, को तब के प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु द्वारा एक केबिनेट मीटिंग के दौरान अपमानित और लांछित किया गया। ”आप एक पूर्णतया साम्प्रदायिक हो और मैं तुम्हारे सुझावों और प्रस्तावों के साथ कभी पार्टी नहीं बन सकता”-नेहरु एक महत्वपूर्ण केबिनेट बैठक में सरदार पटेल पर चिल्लाए जिसमें निजाम की निजी सेना-रजाकारों के चंगुल से, सेना की कार्रवाई से हैदराबाद की मुक्ति पर विचार हो रहा था।

हतप्रभ सरदार पटेल ने मेज पर से अपने पेपर इक्ट्ठे किए और धीरे-धीरे चलते हुऐ कैबिनेट कक्ष से बाहर चले गए। यह अंतिम अवसर था जब पटेल ने कैबिनेट बैठक में भाग लिया। 1947 बैच के आईएस अधिकारी एम के नायर ने अपने संस्मरण ”विद नो इल फीलिंग टू एनीबॉडी” में लिखा है कि ”उन्होंने तब से नेहरु से बोलना भी बंद कर दिया।”

हालांकि नायर ने उपरोक्त वर्णित कैबिनेट बैठक की सही तिथि नहीं लिखी है, परन्तु यह हैदराबाद मुक्ति के लिए चलाए गए भारतीय सेना के अभियान ऑपरेशन पोलो, जो 13 सितम्बर, 1948 को शुरु होकर 18 सितम्बर को समाप्त हुआ, के पूर्ववर्ती सप्ताहों में हुई होगी।

जबकि सरदार पटेल 2,00,000 रजाकारों के बलात्कार और उत्पात से हैदराबाद को मुक्त कराने के लिए सेना की सीधी कार्रवाई चाहते थे, उधर नेहरु संयुक्त राष्ट्र के विकल्प को प्राथमिकता दे रहे थे।

नायर लिखते हैं कि सरदार पटेल के प्रति नेहरु की निजी घृणा 15 सितम्बर, 1950 को उस दिन और खुलकर सामने आई जिस दिन सरदार ने बॉम्बे (अब मुंबई) में अंतिम सांस ली। ”सरदार पटेल की मृत्यु का समाचार पाने के तुरंत बाद नेहरु ने राज्यों के मंत्रालय को दो नोट भेजे, इनमें से एक में नेहरु ने मेनन को लिखा कि सरदार पटेल द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली के कडिल्लक(Cadillac) कार को उनके कार्यालय को वापस भेज दिया जाए। दूसरा नोट क्षुब्ध कर देने वाला था। नेहरु चाहते थे कि सरकार के जो सचिव सरदार पटेल की अंतिम क्रिया में भाग लेने के इच्छुक थे, वे अपने निजी खर्चे पर ही जाएं।

”लेकिन मेनन ने सभी सचिवों की बैठक बुलाई और जो अंतिम क्रिया में जाना चाहते थे, की सूची मांगी। नेहरु द्वारा भेजे गए ‘नोट‘ का उन्होंने कोई उल्लेख नहीं किया। जिन लोगों ने सरदार की अंतिम यात्रा में जाने की इच्छा व्यक्त की थी उनके हवाई यात्रा के टिकट का पूरा खर्चा मेनन ने चुकाया।”

लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली

7नव.2012

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