Thursday, November 29, 2012

मेरा पुराने समय का गाँव -कविता

भाई रतन सिहं शेखावत जी राजस्थान के एक वड़े ही अच्छे व्यक्तित्व के धनी ब्लागर हैं मैं उनसे वहुत प्रभावित हूँ आज में उनके ब्लाग पर गया तो उनके ब्लाग पर एक कवि बन्धु श्री मान जी गजेन्द्र सिंह जी की कविता ने मुझे प्रभावित किया यह कविता राजस्थानी भाषा में थी मै राजस्थानी तो नही जानता किन्तु उनके ब्लाग पर कुछ शब्दों का अर्थ लिखा हुआ था सो मैने इस कविता का जो आशय लगाया है वह बहुत ही अच्छा लग रहा है तो शायद आपकी कविता का वास्तविक अर्थ तो बड़ा ही अच्छा होगा वैसे हमारी भाषा व आपकी भाषा में शायद बहुत ज्यादा अन्तर नही है।आपका ऐसे काव्य शेयर करने के लिए धन्यबाद
मैने जो आशय लगाया है वह यह है
   कहाँ गया वो गाँव आपना कहाँ गयी वो रीति।
   कहाँ गया वो मिलना जुलना गया जमाना वीत।।
दुःख दर्द के बुरे समय में सदा काम जो आता।
मानव मानव जुड़ा रहता जिय मे होता नाता ।।
त्यौहारों पर गाया जाता कहाँ गया वो गीत।
कहाँ गया वो मिलना जुलना गया जमाना वीत।।
     घर आँगन में वैठा करते,सुख दुःख की बतियाने।
     इक थाली में खाया करते,मिल बाँट कर खाने ।।
     महफिल जो रंगीन बनाता ,कहाँ गया वो मीत।
     कहाँ गया वो मिलना जुलना गया जमाना वीत।।
उन बातों में सुख ज्यादा था,यह जीवन का सार था।
छल कपट औऱ धोकेबाजी,नही एसा व्यवहार था।।
     परदेशी को चिठ्ठी लिखता कहाँ गया वो प्रीत।
     कहाँ गया वो मिलना जुलना गया जमाना बीत।।

                               अनुवाद- ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय
               कविता का मूल वड़े भाई सहाव श्री रतन सिंह शेखावत जी के
                    राजस्थानी भाषा में ब्लाग ज्ञान दर्पण पर है।

2 comments:

  1. वाह ! शानदार!

    दोनों कविताओं को पढ़कर कोई नहीं कह सकता कि -आप राजस्थानी नहीं जानते :)

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  2. सुंदर चित्रण.. ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय जी कविता का हिंदी में सजीव अनुवाद करने व् साझा करने के लिए के लिए धन्यवाद्

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