Friday, October 24, 2014

अन्नकूट यानी गोवर्धन पूजा की कथा

अन्नकूट यानी गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन की जाती है। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई जा पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने देखा कि हजारों गोपियां गोवर्धन पर्वत के पास 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह के साथ नाच गा रही हैं।  श्रीकृष्ण ने इस उत्सव का प्रयोजन पूछा, तो गोपियों ने कहा कि आज तो घर-घर में उत्सव होगा क्योंकि वृत्रासुर को मारने वाले मेघों व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। यदि पूजा से वे प्रसन्न हो जाएं तो ब्रज में वर्षा होती है, जिससे अन्न पैदा होता है और ब्रजवासियों का भरण पोषण होता है।  तब कृष्ण बोले यदि देवता प्रत्यक्ष आकर स्वयं भोग लगाएं, तो तुम्हें यह पूजा अवश्य करनी चाहिए। इतना सुन गोपियां बोलीं कान्हाजी आप को इंद्र की इस प्रकार की निंदा नहीं करनी चाहिए। यह तो इंद्रोज नामक यज्ञ है। इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि नहीं होती है।  श्रीकृष्ण बोले, इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। इस बात को लेकर काफी वाद विवाद हुआ और आखिर श्रीकृष्ण की बात मानते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा होने लगी। सभी ग्वालों और गोपियों ने गोवर्धन पर्वत की मिष्ठान से पूजा की, उधर श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य रूप में गोवर्धन पर्वत को चढ़ाए प्रसाद को खा लिया और उन सभी को आशीर्वाद दिया।  तभी नारद मुनि इंद्रोज यज्ञ देखने की इच्छा से ब्रज के गांव आए, तो इंद्रोज यज्ञ के स्थगित होने का समाचार उन्हें मिला। इतना सुनते ही नारद इंद्र लोक पहुंचे और उदास होकर इंद्र देव से बोले, गोकुल के निवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया है। आज से यज्ञ आदि में उस पर्वत का भी भाग हो गया है।  नारदजी की बातों को सुनकर इंद्र क्रोध में लाल-पीले हो गए। गुस्से में उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर तबाही और प्रलय उत्‍पन्‍न कर दो। मेघ मूसलाधार बरसने लगे। ऐसे में सभी गोकुलवासी श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।  गोप-गोपियों की करुण पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले, तुम सभी गोवर्धन पर्वत पर जाओ वही तुम्हारी रक्षा करेंगे। सभी गोकुलवासी गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। श्रीकृष्ण भी उनके साथ चल दिए। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठा लिया। गोकुलवासी पर्वत की छाया में सात दिन तक रहे और अतिवृष्टि से उनकी जिंदगी बच गई।  सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं पड़ा। यह चमत्कार देखकर ब्रह्मा जी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात सुनकर इंद्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवे दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व प्रचलन में आया। -
अन्नकूट यानी गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन की जाती है। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई जा पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने देखा कि हजारों गोपियां गोवर्धन पर्वत के पास 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह के साथ नाच गा रही हैं।
श्रीकृष्ण ने इस उत्सव का प्रयोजन पूछा, तो गोपियों ने कहा कि आज तो घर-घर में उत्सव होगा क्योंकि वृत्रासुर को मारने वाले मेघों व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। यदि पूजा से वे प्रसन्न हो जाएं तो ब्रज में वर्षा होती है, जिससे अन्न पैदा होता है और ब्रजवासियों का भरण पोषण होता है।
तब कृष्ण बोले यदि देवता प्रत्यक्ष आकर स्वयं भोग लगाएं, तो तुम्हें यह पूजा अवश्य करनी चाहिए। इतना सुन गोपियां बोलीं कान्हाजी आप को इंद्र की इस प्रकार की निंदा नहीं करनी चाहिए। यह तो इंद्रोज नामक यज्ञ है। इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि नहीं होती है।
श्रीकृष्ण बोले, इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। इस बात को लेकर काफी वाद विवाद हुआ और आखिर श्रीकृष्ण की बात मानते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा होने लगी। सभी ग्वालों और गोपियों ने गोवर्धन पर्वत की मिष्ठान से पूजा की, उधर श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य रूप में गोवर्धन पर्वत को चढ़ाए प्रसाद को खा लिया और उन सभी को आशीर्वाद दिया।
तभी नारद मुनि इंद्रोज यज्ञ देखने की इच्छा से ब्रज के गांव आए, तो इंद्रोज यज्ञ के स्थगित होने का समाचार उन्हें मिला। इतना सुनते ही नारद इंद्र लोक पहुंचे और उदास होकर इंद्र देव से बोले, गोकुल के निवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया है। आज से यज्ञ आदि में उस पर्वत का भी भाग हो गया है।
नारदजी की बातों को सुनकर इंद्र क्रोध में लाल-पीले हो गए। गुस्से में उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर तबाही और प्रलय उत्‍पन्‍न कर दो। मेघ मूसलाधार बरसने लगे। ऐसे में सभी गोकुलवासी श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।
गोप-गोपियों की करुण पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले, तुम सभी गोवर्धन पर्वत पर जाओ वही तुम्हारी रक्षा करेंगे। सभी गोकुलवासी गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। श्रीकृष्ण भी उनके साथ चल दिए। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठा लिया। गोकुलवासी पर्वत की छाया में सात दिन तक रहे और अतिवृष्टि से उनकी जिंदगी बच गई।
सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं पड़ा। यह चमत्कार देखकर ब्रह्मा जी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात सुनकर इंद्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवे दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व प्रचलन में आया।
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