Monday, December 10, 2012

तीन युवा क्रांतिकारी दिनेश चन्द्र गुप्त, विनय बसु और बादल गुप्ता -जरा याद करो कुर्वानी

आजादी जिसे कहते हैं वह अपार दुःख छेलकर हमारे क्रान्तिवीरों ने हमें उपलव्ध कराय़ी किन्तु हाय हमारा भाग्य हमारे भाग्य की आजादी का छीका तो पाकिस्तान व भारत के मुसलमानो को नहेरु व गाँधी की कृपा से मिल गयी किन्तु हिन्दु तो आज भी गुलाम ही रहा मेरे प्यारे भाइयो इन क्रान्तिवीरों को याद करते रहो जिससे अगर जरुरत पड़ी तो फिर से क्रान्ति मार्ग पर चलना पड़ सकता है तो ये वीर हैं तीन युवा क्रांतिकारी दिनेश चन्द्र गुप्त, विनय बसु और बादल गुप्ता
भारत न तो पहले ही खाली था वीरों से न आज ही खाली है केवल याद रखने की जरुरत है औऱ याद कराने की जरुरत है हनुमान तो रहते ही हैं भारत में केवल जामवन्तों को याददिलाना पड़ता है।                     ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय 

भारत के सच्चे क्रांतिकारियों को तो भूल गए.......याद करें इन शेरों के लिए आज आप सुकून से हैं.........लाइक अवश्य करें 

आज 8 दिसम्बर का दिन भारतमाता को दासता की बेड़ियों से मुक्त कराने के अपने प्रयासों के तहत क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजी सरकार के मन में दहशत उत्पन्न करने के लिए कलकत्ता के डलहौजी स्क्यूयर में स्थित सेकेट्रीएट बिल्डिंग राइटर्स बिल्डिंग पर कि
ये गए हमले को याद करने का दिन है| ८ दिसंबर १९३० को यूरोपियन लिबास में तीन युवा क्रांतिकारी दिनेश चन्द्र गुप्त, विनय बसु और बादल गुप्ता कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश कर गए और जेलों में भारतीय कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार करने वाले इन्स्पेक्टर जनरल ऑफ़ प्रिजन एन.एस. सिप्सन को मार गिराया| फिर क्या था, ब्रिटिश पुलिस और तीन युवा क्रांतिकारियों में गोलीबारी शुरू हो गयी जिसमें कई अन्य अधिकारी भी गंभीर रूप से घायल हुए| लम्बे संघर्ष के बाद पुलिस उन पर हावी होने लगी| गिरफ्तार ना होने की इच्छा के चलते बादल गुप्ता ने पोटेशियम साइनाइड खा लिया और मृत्यु का वरण किया जबकि विनय और दिनेश ने अपनी ही रिवाल्वार्स से खुद को गोली मार ली| दोनों को अस्पताल ले जाया गया जहाँ विनय की १३ दिसंबर १९३० को मृत्यु हो गयी पर दिनेश को बचा लिया गया| उन पर मुकदमा चला कर उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी और ७ जुलाई १९३१ को १९ वर्ष की आयु में उन्हें अलीपुर जेल में फांसी दे दी गयी| इन तीनों की शहादत ने कितने ही दिलों को झझकोरा और क्रांति का ये कारवां आगे बढ़ता गया| स्वतंत्रता के बाद दिनेश, विनय और बादल की स्मृति को अक्षुण रखने के लिए डलहौजी स्क्यूयर का नाम बदल कर इनके नाम पार कर दिया गया और आज इसे बी.बी.डी.बाग़ कहा जाता है। इन हुतात्माओं को शत शत नमन।

वन्दे मातरम जय आजाद.......!!
भारत के सच्चे क्रांतिकारियों को तो भूल गए.......याद करें इन शेरों के लिए जिनके प्रयासों से ही आज हम व आप सुकून से हैं.........

आज 8 दिसम्बर का दिन भारतमाता को दासता की बेड़ियों से मुक्त कराने के अपने प्रयासों के तहत क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजी सरकार के मन में दहशत उत्पन्न करने के लिए कलकत्ता के डलहौजी स्क्यूयर में स्थित सेकेट्रीएट बिल्डिंग राइटर्स बिल्डिंग पर किये गए हमले को याद करने का दिन है| ८ दिसंबर १९३० को यूरोपियन लिबास में तीन युवा क्रांतिकारी दिनेश चन्द्र गुप्त, विनय बसु और बादल गुप्ता कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश कर गए और जेलों में भारतीय कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार करने वाले इन्स्पेक्टर जनरल ऑफ़ प्रिजन एन.एस. सिप्सन को मार गिराया| फिर क्या था, ब्रिटिश पुलिस और तीन युवा क्रांतिकारियों में गोलीबारी शुरू हो गयी जिसमें कई अन्य अधिकारी भी गंभीर रूप से घायल हुए| लम्बे संघर्ष के बाद पुलिस उन पर हावी होने लगी| गिरफ्तार ना होने की इच्छा के चलते बादल गुप्ता ने पोटेशियम साइनाइड खा लिया और मृत्यु का वरण किया जबकि विनय और दिनेश ने अपनी ही रिवाल्वार्स से खुद को गोली मार ली| दोनों को अस्पताल ले जाया गया जहाँ विनय की १३ दिसंबर १९३० को मृत्यु हो गयी पर दिनेश को बचा लिया गया| उन पर मुकदमा चला कर उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी और ७ जुलाई १९३१ को १९ वर्ष की आयु में उन्हें अलीपुर जेल में फांसी दे दी गयी| इन तीनों की शहादत ने कितने ही दिलों को झझकोरा और क्रांति का ये कारवां आगे बढ़ता गया| स्वतंत्रता के बाद दिनेश, विनय और बादल की स्मृति को अक्षुण रखने के लिए डलहौजी स्क्यूयर का नाम बदल कर इनके नाम पार कर दिया गया और आज इसे बी.बी.डी.बाग़ कहा जाता है। इन हुतात्माओं को शत शत नमन।

वन्दे मातरम जय आजाद.......!!    
Deepa Sharma was tagged in Sarfaroshi ki tamanna's photo.

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