Monday, December 10, 2012

फिर याद करे क्रान्तिवीर प्रफुल्ल चन्द्र चाकी को - 10 दिसम्बर पर विशेष

 आज है 10 दिसम्बर आज के ही दिन सन 1888 में एक वीर भारत माँ की कोख  से निकल कर पैदा हुआ जिसका नाम था प्रफुल्ल चन्द्र चाकी लैकिन आज उस वीर की माटी अपने देश की माटी नही हैआज वो हो गयी है विदेशी धरती। देश के चिर परिचित छदम देशभक्तों ने वह धरती हमारी भारत माँ के आँचल से अलग कर दी है।स्थान था बंगाल का उत्तरी भाग में स्थित बोगरा गाँव जहा यह बीर पैदा हुआ आज यह स्थान है बांग्लादेश में। यह बीर भारत माँ की बगिया में खिला वह पुष्प था जो स्वंय एक कली के रुप में ही माँ की सेवा में काम आ गया।मैं इस भारत के अमर सपूत को कोटि बार नमन करता हूँ मेरे पास उन्है चढाने के लिए केवल श्रद्धा सुमन ही हैं क्योकि इन्है भारत की स्वाधीनता की ख्वाहिस ही तो थी जिसके लिए वे वेदी पर स्वाहा हो गये।है अमर वलिदानी आ जा हमारे बीच जिससे हम पुनः देश से इन गद्दारों का सफाया कर सकें तुम नौजवानों को प्रेरणा देते रहो जिससे भारत से गुलामी जो दिलों में है का विनाश हो जाए 
                          ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय 
आज यह पोस्ट मैने ली है एक और इंकलाव नाम के फेसबुक पेज से धन्यबाद लिखने बाले भाई को भी 
॥ एक और इंकलाब ॥॥ shared हिन्दुस्तान - मेरा इश्क ,मेरा जुनून,मेरी जान **'s photo.
Photo: सन १८८८ में आज १० दिसम्बर के दिन जन्मे क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रफुल्ल का ज...न्म उत्तरी बंगाल के बोगरा गाँव (अब बांग्लादेश में स्थित) में हुआ था। जब प्रफुल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ और उनके अन्दर देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई। इतिहासकार भास्कर मजुमदार के अनुसार प्रफुल्ल चाकी राष्ट्रवादियों के दमन के लिए बंगाल सरकार के कार्लाइस सर्कुलर के विरोध में चलाए गए छात्र आंदोलन की उपज थे। पूर्वी बंगाल में छात्र आंदोलन में उनके योगदान को देखते हुए क्रांतिकारी बारीद्र घोष उन्हें कोलकाता ले आए जहाँ उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ। उन्हें पहला महत्वपूर्ण काम अंग्रेज सेना अधिकारी सर जोसेफ बैंफलाइड फुलर को मारने का दिया गया पर यह योजना कुछ कारणों से सफल नहीं हु
ई।
क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए कुख्यात कोलकाता के चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को जब क्रांतिकारियों ने जान से मार डालने का निर्णय लिया तो यह कार्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को सौंपा गया। दोनों क्रांतिकारी इस उद्देश्य से मुजफ्फरपुर पहुंचे जहाँ ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भाँप कर उसकी सरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर भेज दिया था। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया एवं ३० अप्रैल १९०८ ई० को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएँ सवार थीं। वे दोनों इस हमले में मारी गईं।
दोनों क्रन्तिकारी घटनास्थल से भाग निकले परन्तु मोकामा स्टेशन पर चाकी को पुलिस ने घेर लिया| उन्होंने अपनी रिवाल्वर से अपने ऊपर गोली चलाकर अपनी जान दे दी। यह घटना १ मई, १९०८ की है। बिहार के मोकामा स्टेशन के पास प्रफुल्ल चाकी की मौत के बाद पुलिस उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी ने चाकी का सिर काट कर उसे सबूत के तौर पर मुजफ्फरपुर की अदालत में पेश किया। यह अंग्रेज शासन की जघन्यतम घटनाओं में शामिल है। चाकी का बलिदान जाने कितने ही युवकों का प्रेरणाश्रोत बना और उसी राह पर चलकर अनगिनत युवाओं ने मातृभूमि की बलिवेदी पर खुद को होम कर दिया| महान हुतात्मा को आज उनके जन्मदिवस पर कोटिशः नमन|
सन १८८८ में आज १० दिसम्बर के दिन जन्मे क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रफुल्ल का ज...न्म उत्तरी बंगाल के बोगरा गाँव (अब बांग्लादेश में स्थित) में हुआ था। जब प्रफुल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ और उनके अन्दर देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई। इतिहासकार भास्कर मजुमदार के अनुसार प्रफुल्ल चाकी राष्ट्रवादियों के दमन के लिए बंगाल सरकार के कार्लाइस सर्कुलर के विरोध में चलाए गए छात्र आंदोलन की उपज थे। पूर्वी बंगाल में छात्र आंदोलन में उनके योगदान को देखते हुए क्रांतिकारी बारीद्र घोष उन्हें कोलकाता ले आए जहाँ उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ। उन्हें पहला महत्वपूर्ण काम अंग्रेज सेना अधिकारी सर जोसेफ बैंफलाइड फुलर को मारने का दिया गया पर यह योजना कुछ कारणों से सफल नहीं हुई। क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए कुख्यात कोलकाता के चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को जब क्रांतिकारियों ने जान से मार डालने का निर्णय लिया तो यह कार्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को सौंपा गया। दोनों क्रांतिकारी इस उद्देश्य से मुजफ्फरपुर पहुंचे जहाँ ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भाँप कर उसकी सरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर भेज दिया था। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया एवं ३० अप्रैल १९०८ ई० को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएँ सवार थीं। वे दोनों इस हमले में मारी गईं। दोनों क्रन्तिकारी घटनास्थल से भाग निकले परन्तु मोकामा स्टेशन पर चाकी को पुलिस ने घेर लिया| उन्होंने अपनी रिवाल्वर से अपने ऊपर गोली चलाकर अपनी जान दे दी। यह घटना १ मई, १९०८ की है। बिहार के मोकामा स्टेशन के पास प्रफुल्ल चाकी की मौत के बाद पुलिस उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी ने चाकी का सिर काट कर उसे सबूत के तौर पर मुजफ्फरपुर की अदालत में पेश किया। यह अंग्रेज शासन की जघन्यतम घटनाओं में शामिल है। चाकी का बलिदान जाने कितने ही युवकों का प्रेरणाश्रोत बना और उसी राह पर चलकर अनगिनत युवाओं ने मातृभूमि की बलिवेदी पर खुद को होम कर दिया| महान हुतात्मा को आज उनके जन्मदिवस पर कोटिशः नमन|सन १८८८ में आज १० दिसम्बर के दिन जन्मे क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रफुल्ल का ज...न्म उत्तरी बंगाल के बोगरा गाँव (अब बांग्लादेश में स्थित) में हुआ था। जब प्रफु
ल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ और उनके अन्दर देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई। इतिहासकार भास्कर मजुमदार के अनुसार प्रफुल्ल चाकी राष्ट्रवादियों के दमन के लिए बंगाल सरकार के कार्लाइस सर्कुलर के विरोध में चलाए गए छात्र आंदोलन की उपज थे। पूर्वी बंगाल में छात्र आंदोलन में उनके योगदान को देखते हुए क्रांतिकारी बारीद्र घोष उन्हें कोलकाता ले आए जहाँ उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ। उन्हें पहला महत्वपूर्ण काम अंग्रेज सेना अधिकारी सर जोसेफ बैंफलाइड फुलर को मारने का दिया गया पर यह योजना कुछ कारणों से सफल नहीं हुई।
क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए कुख्यात कोलकाता के चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को जब क्रांतिकारियों ने जान से मार डालने का निर्णय लिया तो यह कार्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को सौंपा गया। दोनों क्रांतिकारी इस उद्देश्य से मुजफ्फरपुर पहुंचे जहाँ ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भाँप कर उसकी सरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर भेज दिया था। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया एवं ३० अप्रैल १९०८ ई० को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएँ सवार थीं। वे दोनों इस हमले में मारी गईं।
दोनों क्रन्तिकारी घटनास्थल से भाग निकले परन्तु मोकामा स्टेशन पर चाकी को पुलिस ने घेर लिया| उन्होंने अपनी रिवाल्वर से अपने ऊपर गोली चलाकर अपनी जान दे दी। यह घटना १ मई, १९०८ की है। बिहार के मोकामा स्टेशन के पास प्रफुल्ल चाकी की मौत के बाद पुलिस उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी ने चाकी का सिर काट कर उसे सबूत के तौर पर मुजफ्फरपुर की अदालत में पेश किया। यह अंग्रेज शासन की जघन्यतम घटनाओं में शामिल है। चाकी का बलिदान जाने कितने ही युवकों का प्रेरणाश्रोत बना और उसी राह पर चलकर अनगिनत युवाओं ने मातृभूमि की बलिवेदी पर खुद को होम कर दिया| महान हुतात्मा को आज उनके जन्मदिवस पर कोटिशः नमन|
सन १८८८ में आज १० दिसम्बर के दिन जन्मे क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रफुल्ल का ज...न्म उत्तरी बंगाल के बोगरा गाँव (अब बांग्लादेश में स्थित) में हुआ था। जब प्रफुल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ और उनके अन्दर देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई। इतिहासकार भास्कर मजुमदार के अनुसार प्रफुल्ल चाकी राष्ट्रवादियों के दमन के लिए बंगाल सरकार के कार्लाइस सर्कुलर के विरोध में चलाए गए छात्र आंदोलन की उपज थे। पूर्वी बंगाल में छात्र आंदोलन में उनके योगदान को देखते हुए क्रांतिकारी बारीद्र घोष उन्हें कोलकाता ले आए जहाँ उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ। उन्हें पहला महत्वपूर्ण काम अंग्रेज सेना अधिकारी सर जोसेफ बैंफलाइड फुलर को मारने का दिया गया पर यह योजना कुछ कारणों से सफल नहीं हुई। क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए कुख्यात कोलकाता के चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को जब क्रांतिकारियों ने जान से मार डालने का निर्णय लिया तो यह कार्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को सौंपा गया। दोनों क्रांतिकारी इस उद्देश्य से मुजफ्फरपुर पहुंचे जहाँ ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भाँप कर उसकी सरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर भेज दिया था। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया एवं ३० अप्रैल १९०८ ई० को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएँ सवार थीं। वे दोनों इस हमले में मारी गईं। दोनों क्रन्तिकारी घटनास्थल से भाग निकले परन्तु मोकामा स्टेशन पर चाकी को पुलिस ने घेर लिया| उन्होंने अपनी रिवाल्वर से अपने ऊपर गोली चलाकर अपनी जान दे दी। यह घटना १ मई, १९०८ की है। बिहार के मोकामा स्टेशन के पास प्रफुल्ल चाकी की मौत के बाद पुलिस उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी ने चाकी का सिर काट कर उसे सबूत के तौर पर मुजफ्फरपुर की अदालत में पेश किया। यह अंग्रेज शासन की जघन्यतम घटनाओं में शामिल है। चाकी का बलिदान जाने कितने ही युवकों का प्रेरणाश्रोत बना और उसी राह पर चलकर अनगिनत युवाओं ने मातृभूमि की बलिवेदी पर खुद को होम कर दिया| महान हुतात्मा को आज उनके जन्मदिवस पर कोटिशः नमन|

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