Sunday, October 28, 2012

बँटवारे के समय धर्म के नाम पर पाकिस्तान व भारत का धर्मनिरपेक्ष बनाकर नहेरु ने अपने दीन की सेवा की थी


भारत का पूर्व इतिहास पिछले 1100-1200 वर्षों को अगर छोड़ दिया जाए तो एक गौरव शाली इतिहास रहा है।और इस गुलामी के काल में भी अनगिनित पुष्प भारत माँ ने जाए है  जिनके बिना भारत का इतिहास खाली हो जाएगा।लैकिन बात यह है कि इतने विशाल इतिहास को रखने बाला यह भारत कैसे इतनी लम्वी गुलामी मे चला गया।तो विचार मंथन करने के बाद कई बाते सामने आती हैं।एक तो महाभारत सीरियल जब चल रहा था तब का एक सीन मैं कभी नही भूलता जब भीष्म पितामह माँ गंगा से पूछते हैं कि माँ इतना समृद्धिशाली इतिहास होने के बावजूद भी यह जो कुछ हो रहा है उसका कारण क्या है।तो माँ गंगा का उत्तर विचारणीय है कि वेटा पहाड़ की चोटी पर पहुँचने के बाद वहाँ से फिर कहाँ जाओगे क्योंकि वहाँ से ऊपर कोई स्थान ही नही है,अब चूकि हस्तिनापुर अपना चरम विन्दु पा चुका है तो अब नीचे आना शेष है और बाकी आपके महान कार्य व्यवहार  आपके बच्चों का मार्ग दर्शन करते है।
तो यह तो बात हुयी कि चरम सीमा पर पहुँचने के बाद और आगे नही जाया जा सकता।लैकिन इतना नीचे पहुँच जाएगे यह बात अब अधिक विचारणीय हो गयी है।किसी भी युग में भारत के सम्मानित शासक जिन्है हम अपना पूर्वज कहते रहै है सब कुछ रहै हो पर भृष्ट नही रहै।तभी हम उन्है अपना महापुरुष कहते रहै हैं।क्यो कोई जवरजस्ती किसी से दीपावली या होली या कृष्णजन्माष्टमी मनवाता है सभी अपने आप अपनी श्रद्धा रखते हुये मनाते हैं।अन्य धर्मों में तो भी जवरजस्ती होगी किन्तु इस मानवतावादी धर्म में वहुत से त्यौहार जातियाँ विशेष ही मनाती है किन्तु कुछ त्यौहारों को तो उत्तर में काश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक सभी वड़े ही प्रेम से मनाते है तो यह सिद्ध हो जाता है कि ये महान पुरुष किसी एक वर्ग का भला करने वाले नही थे इन्हौने सारे वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हुये रावण या कंस अथवा महिषासुर के अत्याचारों से समाज को मुक्ति दिलाई थी।तो फिर एसा क्या हुआ कि दुर्गा,राम व कृष्ण ही नही अन्यान्य समाजसेवी महापुरुषों को मानने वाले उनकी पूजा करने वाले देश को इन समय समय पर आते रहने वाले तूफानी आकृमण कारियों ने गुलाम बना लिया।
तो मै आज जिस बात को कहने जा रहा हू वो कुछ अलग प्रकार की है।कि भारत ने अपनी पूजा पद्धति ,शिक्षा पद्धति चेन्ज की है तब से हम पर आकृमणों की छड़ी लग गयी है।जब से हमने अपने महापुरुषों की पूजा लोटा चढ़ाकर और मंदिर में फूल अर्पित करके करनी शुरु की है तब से हमारा दुर्भाग्य प्रारम्भ हो गया है । लैकिन अब समय आ गया है कि सचेत हो जाऐं।हमें इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिऐ।इस बात को मैं कुछ हिस्सों में बताउँगा ।कृपया नियमित पढ़ना जारी रखें।                                                       भाग-1
बात को लम्बी न ले जाकर में अब उस वात पर आ रहा हूँ जो कहना चाहता हूँ।
भारत की आजादी को अब कोई छोटा मोटा समय नही पूरा 65 वर्ष का समय बीत चुका है।जितना समय आजकल एक व्यक्ति को नही मिलता है।आजादी के बाद हमारी कमाई वढ़नी चाहिये थी इसकी जगह जो कुछ हम पर था वह भी लुट गया और हम कर्जदार भी हो गये देश की आजादी के समय कुछ धन लगभग 25000 करोड़ रुपया हमारा विट्रेन पर बाकी था हमारे देश के नेता उसे भी खा गये औऱ उससे कई गुना और कर्ज लेकर सटक गये तथा डकार भी न ली।औऱ फिर भी जनता के सामने इमानदार के ईमानदार ही बने रहै।और देश को एसे ऐसे घाव दे गये कि मरने के बाद भारत की वास्तविक जनता के लिए नासूर बन गये हैं।तो आज मजबूर होकर एसे नेताऔं की कुण्डली देखने के लिए कुछ राष्ट्र भक्तो को मजवूर होना पड़ा है कि वास्तव में ये लोग जिस रुप में थे वो वही थे या कहीं कालनेमि के रुप में भारत के हनुमानो को धोका देते रहै और हनुमान जी उसे रामभक्त ही समझते रहै त्रेता के हनुमान जी को तो जामवंत जी ने जगा दिया था तो बात ही कुछ और थी किन्तु आज का हनुमान अर्थात भारत की जनता इतनी चिर निद्रा में लीन है कि उसे अपना भला बुरा दिखाई नही दे रहा है।उसे पैसे की स्वपनिल चमक ने चकाचौध कर दिया है।लैकिन जव निद्रा टूटेगी तो पता पड़ेगा कि जिस महल को बना कर खड़ा किया है उसके नीचे जमीन ही नही है।
तो आज बात करते है भारत की आजादी की और आजादी के रहनुमा बने उन नेताओं की जिन्हौने भारत की स्वतंत्रता की वलिवेदी पर चड़े सभी राष्ट्रभक्त शहीदों और बचे हुए रण बाँकुरो के कारनामों का सम्पूर्ण श्रैय खुद ही लूट लिया औऱ लूट लिया भारत की इस मानवता वादी भौली भाली जनता को जिसने इन लोगों को अपना मसीहा समझा था।
अब सबसे पहले समझो काग्रेस क्या थी व इसका निर्माण क्यों हुआ था ?
तो जब 1857 की आजादी की लड़ाई के बाद अग्रेज घवरा गये तब उन्होने योजना बनायी कि कैसे इन भारतीय लोगो की उग्रता को कम किया जाए जिससे अग्रेज आराम से यहाँ राज्य कर सकें।और अगर भारतीयों को कोई विद्रोह की स्थिति पैदा ही न होने पाए और अगर कोई स्थिति पैदा हो भी तो तुरन्त निराकरण इन्ही के द्वारा कराया जाए क्योंकि लोहा ही लोहे को काटता है।किन्तु थोड़े ही दिनो में कांग्रेस में राष्ट्रवादी लोग जुड़ गये तथा उन्होने देखा कि कांग्रेस के मंच से केवल जनता को संबोधित ही किया जा सकता है किन्तु देश को स्वतंत्र नही कराया जा सकता तो उन्हौने अनेकों क्रान्तिकारियों को सहयोग कर बंगाल महाराष्ट्र व पंजाव के साथ-2 संयुक्त प्रान्त आज के उत्तर प्रदेश,विहार व मध्यप्रदेश में अनेकों क्रान्तिकारी दलों का सहयोग शुरुकर दिया ये कांग्रेसी थे महाराष्ट्र के महान देशभक्त बाल गंगाधर तिलक,बंगाल के विपिन चंन्द्र पाल व पंजाव के लाला लाजपत राय और अन्य अनेकों महानुभाव भी थे जिनको समय व स्थान की कमी के कारण से में नही वता पा रहा हूँ और फिर वीर प्रसवनी मातृभू पर वीरो की कमी नही है सभी के नाम न तो मुझे ही याद होंगे न ही मैं इतना विद्वान हूँ मेरी उन महान शहूदों को जिन्है मैं नही जानता हूँ को भी श्रद्धांजलि।तो काग्रेस के निति नियंता मिस्टर हृयूम ने देखा कि मैरी मर्जी के अनुरुप काम नही हो रहा वल्कि कांग्रेस तो सम्पूर्ण आजादी के लक्ष्य पर चल निकली है।तब उसने काग्रेस में फूट डालकर दो दल बना दिये एक जो क्रान्ति समर्थक थे।वे गरम दलीय व जो अंग्रेज समर्थक थे वे नरम दलीय नाम से विख्यात हुये जिनके नेता श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी हो गये।अब क्योंकि शासन अग्रेजों का था ही समाचार पत्रों पर नियंत्रण सरकार का था रेडियो सरकारी थे अतः नरम दलीय कांग्रेस को प्रचार मिला तथा गरम दलीय को जेल मिली और सूचनाए बाहर तक भी नही आती थी जब कोई बहुत बड़ी घटना होती तो ही गरम दलीय नेताओं का नाम कभी समाचार पत्र या रेडियो पर लिया जाता जबकि नरम दलीय नेताओं को काग्रेस कहकर जनता में खूव प्रचारित किया जाता और किसी भी आन्दोलन की चाबी हमेंशा सरकार के हाथ में होती जो सर ए हृयुम चाहता था वैसा हो रहा था ।अतः सरकार इनके पक्ष में थी।जब सरकार को किसी क्रान्ति कारी से कोई परेशानी होती तो कांग्रेस के नेताओं से कहकर उनकी क्रान्ति को बदनाम कर अहिंसा के नाम पर जनता को वरगलाया जाता तो सरकार इनका क्यूकर विरोध करती।अतः जल्दी ही कांग्रेस के नेता फेमस हो गये।औऱ राष्ट्रवादी नेता गर्त में चले गये।इसका सच्चा उदा. आपको भगत सिंह या चन्द्रशेखर के मामले में समझने से मिल जाएगा।इन्हौने खूब वदनाम किया क्रान्तिकारियों को कहा जाता है कि चन्द्रशेखर के अल्फ्रेड पार्क में होने की सूचना भी भारत के एक सर्वाधिक वरिष्ठ नेता ने ही दी थी।जिन पर जनता ने भरोसा कर सर्वाधिक वरिष्ट पद दिया और उन्हौने भारत को अनेको समस्याओं से ग्रस्त कर दिया। यह तो एक तथ्य ही है कि एक बार जब कांग्रेस में फिर से राष्ट्रवादियों का वर्चष्व कायम हो गया तब महान स्वतन्त्रता सेनानी सर्व श्री सुभाष चन्द्र वोस जी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया तब कांग्रेसी महात्मा जी जिन्है हम लोग आज वापू कहकर पुकारते है ने यह कहते हुये अनसन कर दिया कि मुझे किसी भी कीमत पर सुभाष मंजूर नही है।तब सुभाष बावू ने खुद ही कांग्रस की प्राथमिक सद्स्यता तक से इस्तीफा दे दिया था।यह इन लोगों की मानवताओं का नमूना है।और उसके वाद भी सुभाष चन्द्र वोस आजादी के लिए जापान चले गये तथा वहाँ जाकर आजाद हिन्द फौज का गठन किया औऱ आजादी की लड़ाई लड़ी किन्तु वाह रे कालनेमियों तुमने फिर भी इन्हैं नही वख्सा वे प्लेन  क्रेस मे मरे या जिन्दा रहै पता ही न चलने दिया।
आगे देश का बँटवारा हुआ वो भी धर्म के नाम पर तो भारत को बना दिया धर्म निरपेक्ष राष्ट्र क्यों क्योंकि यह तुम्हारे पापा जी दे गये थे तुम्हैं कि वेटा जैसा चाहै वैसा करना।औऱ यह भी तब जव कि
 1921-22-23में तुमने मुसलमानों का टर्की का खलीफा अग्रेजों द्वारा बदल दिये जाने पर मुसलमान अग्रेज विरोधी हो गये तव तुमने उनका सहयोग हिन्दुओं द्वारा कराया जिसमे हिन्दुओं ने अपने कार्यकर्ता अपना पैसा अपनी शक्ति लगाई तथा मुसलमानों के कहने पर इस सम्पूर्ण धन को मुसलमानो को सौप दिया जिससे उन्हौने हथियार खरीदे गोला वारुद खरीदी तब तुम्हारी अहिंसा कहाँ चली गयी थी।और जब सारी शक्ति लगाने के बावजूद भी अग्रेजों का कुछ न् विगाड़ सके और अग्रेजों ने अपनी सेना लगाकर मुसलमानों का प्रतिकार ही नही किया पूर्ण उच्छेद कर डाला तो उन मुसलमानों ने जिनमें उत्तर प्रदेस मे वने एक नवीन विश्वविद्यालय के परम आदरणीय जिनके नाम पर विद्यालय वनाया गया है ही प्रमुख थे ने हिन्दुओं पर अपनी भड़ास निकालते हुये एसे कत्लेआम को अंजाम दिया हजारों बहिन वेटियों की इज्जते लूटी गई,सामूहिक बलात्कार किये गये,तलवार के बल पर सामूहिक धर्म परिवर्तन कराया गया और दंगा शांत होने पर जो लोग धर्म परिवर्तित कर बापस आना चाहते थे उन पर दोबारा अत्याचार हुऐ अगर इस बात का आँखों देखा वर्णन सनना व पढ़ना हो तो वीर सावरकर की पुस्तक मोपला को पढ़े। जिसे भारतीय इतिहास में 1923 का मोपला काण्ड के नाम से जाना जाता है।
चलो यह मान भी ले कि तुम महानता के वड़े ही असली पुजारी थे क्या 1947 में बँटवारे के तुरन्त पहले नोआखाली कलकत्ता के ही नही जहाँ भी मुसलमानों की संख्या अधिक थी वहाँ के दंगे तुम्हारी आँखे खोलने के लिए काफी नही थे जो तुमने भारत को जानबूझ कर नोवल पुरुस्कार विजेता वनने के लिए एसी आग में झोंक दिया जो आज तक वुझाए नही वुझ पा रही है। अभी मेरी वात अधूरी है आगे फिर वताऊंगा
                                                                                      क्रमशः------------------------------------

1 comment: